छोटी छोटी किताबें
करती रहीं संघर्ष
कलम भी कागज़ों के पीछे
सहमी हुई
माँगती रही हक़....
बराबरी का !
बाँकपन में कंचों का खेल
उंगलियों का
अभ्यास होता है !
तो क्या सारे खेल
उंगलियों से नही खेले जाते ?
लापरवाह गेंद हँसती रही
गम्भीर घड़े टूटते रहे.... बेबस
वक़्त और जल
दोनों बह गए
वक़्त रुका नही
जल सूखा नही !
क्योंकि किताबें
करती रहीं संघर्ष
सहमे हुए शब्द
माँगते रहे हक़.......
बराबरी का !
ज़्यादा की चाह नही रही
मगर संतुलन को
नकार नही सकी
क्योंकि हर संघर्ष का उद्देश्य
संतुलन होता है ।
करुणा सक्सेना
करती रहीं संघर्ष
कलम भी कागज़ों के पीछे
सहमी हुई
माँगती रही हक़....
बराबरी का !
बाँकपन में कंचों का खेल
उंगलियों का
अभ्यास होता है !
तो क्या सारे खेल
उंगलियों से नही खेले जाते ?
लापरवाह गेंद हँसती रही
गम्भीर घड़े टूटते रहे.... बेबस
वक़्त और जल
दोनों बह गए
वक़्त रुका नही
जल सूखा नही !
क्योंकि किताबें
करती रहीं संघर्ष
सहमे हुए शब्द
माँगते रहे हक़.......
बराबरी का !
ज़्यादा की चाह नही रही
मगर संतुलन को
नकार नही सकी
क्योंकि हर संघर्ष का उद्देश्य
संतुलन होता है ।
करुणा सक्सेना