गुरुवार, 12 जनवरी 2017

मनहरण

मन में उठा विराग
छल है ये जीव-राग
खोजने चली तो तेरे
द्वार तक जाऊँगी ।।

मुझको उबार दे या
मुझको डुबाले तू ही
तैरने चली तो तेरे
पार तक जाऊँगी ।।

मन तू करे हरण
प्रेम मैं करूँ वरण
समझी नही तो छन्द
सार तक जाऊँगी ।।

छोड़ साँसों का व्यापार
छेड़ दे तू ब्रह्म-तार
तेरी जीत को कन्हाई
हार तक जाऊंगी ।।




करुणा सक्सेना

मंगलवार, 10 जनवरी 2017

कोहरा घना

एक दृश्य 
कोहरा घना
भोर की हथेली पर
सोखता
चटक रंगों को...
तोड़ता
भ्रम.... कि हम हैं ब्रह्म !

जो हैं अभिशप्त
ब्रह्म स्वयं
हो जाने को कोहरा घना !

अगर अदृश्य हैं
यह ब्रह्म दिशाएँ
तो घना क्या है ?

घनी सड़कें, घने जंगल
घना मन-तार सारा है...
घना होना, नही होना
नही होना...
चितेरे ब्रह्म सा होना
नही होना...
एक दृश्य कोहरा घना ।



करुणा सक्सेना