मन में उठा विराग
छल है ये जीव-राग
खोजने चली तो तेरे
द्वार तक जाऊँगी ।।
मुझको उबार दे या
मुझको डुबाले तू ही
तैरने चली तो तेरे
पार तक जाऊँगी ।।
मन तू करे हरण
प्रेम मैं करूँ वरण
समझी नही तो छन्द
सार तक जाऊँगी ।।
छोड़ साँसों का व्यापार
छेड़ दे तू ब्रह्म-तार
तेरी जीत को कन्हाई
हार तक जाऊंगी ।।
करुणा सक्सेना
छल है ये जीव-राग
खोजने चली तो तेरे
द्वार तक जाऊँगी ।।
मुझको उबार दे या
मुझको डुबाले तू ही
तैरने चली तो तेरे
पार तक जाऊँगी ।।
मन तू करे हरण
प्रेम मैं करूँ वरण
समझी नही तो छन्द
सार तक जाऊँगी ।।
छोड़ साँसों का व्यापार
छेड़ दे तू ब्रह्म-तार
तेरी जीत को कन्हाई
हार तक जाऊंगी ।।
करुणा सक्सेना