रविवार, 4 अगस्त 2019

मौन

मेरे हिस्से का मौन
मेरा चयन है.....!
कभी सही बातों पर भी ग़लत,
तो कभी ग़लत बातों पर
एकदम सही.....!!

माँ.. स्कूल भेजते हुए
चोटियों में रोज़
मौन ही तो गूँथ देती है...
और लौटते ही बीन लेती है
सारे शब्द और सवाल

जबसे समझने लगी हूँ मौन....!!
शब्द.. अर्थविहीन लगने लगे हैं
माँ ने भी साधा है इसे
सदियों से....

कभी कभी लगता है
बदलनी ही होगी
चयनमाला.... जीवन की ;
मौन से मुखरता की ओर ।



करुणा सक्सेना

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