शनिवार, 24 दिसंबर 2016

प्रेम

लिखीं हर कवि ने
प्रेम पगी कविताएं
अपने प्रारम्भिक दौर में
और बनाये सेतु
उतरने के लिए
महाकाव्य के पार !

शब्दों में बंधे भाव
और भावों में गुंथे
प्रेम में
कचियाए अनुभव
उतर आए
पतवार बनकर !

एक - एक चाप से
धर्म सिद्ध हुए
और दमक उठी प्रेमाग्नि
पहाड़ों के पार
नापते हुए
मीलों की यात्रा !

प्रेम में बिराजे
कुछ भगवान बनकर
कुछ एक भक्त हुए
और हम खड़े हैं
आज भी
तेरे द्वार
प्रेम में ।


करुणा सक्सेना

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